जीवन और योग भाग ३ प्रेम: वास्तविकता और दिखावा
क्या आप सच में प्रेम करते हैं या केवल दिखावा?
यह सवाल बहुत गहरा और महत्वपूर्ण है। हममें से अधिकतर लोग सोचते हैं कि वे प्रेम कर रहे हैं, लेकिन क्या वह प्रेम वास्तव में दिल से आता है, या फिर वह सिर्फ एक सामाजिक शिष्टाचार है? क्या आपने कभी इस बात पर ध्यान दिया है कि जब आप किसी मित्र का स्वागत करते हैं, तो आपके मन में खुशी होती है, और आप पूरी ऊर्जा और समर्पण से उसका स्वागत करते हैं? लेकिन, जब कोई अनचाहा मेहमान आता है, तो आप उसी ऊर्जा के साथ उसका स्वागत नहीं करते। आप उसे इसलिए स्वीकारते हैं क्योंकि समाज कहता है कि ‘घर आए मेहमान का सत्कार करना चाहिए।’ क्या आपने इन दोनों स्थितियों के बीच का अंतर महसूस किया है?
प्रेम या शिष्टाचार
जब आप सचमुच किसी का स्वागत दिल से करते हैं, तो उसमें प्रेम और अपनापन होता है। उस समय आप एक प्रवाह में होते हैं, और आपका हर एक कार्य उस प्रेम से भरा होता है। परंतु जब आप किसी का स्वागत केवल मजबूरी में या शिष्टाचार के चलते करते हैं, तो उसमें वह आत्मीयता और गर्मजोशी नहीं होती। कोई संवेदनशील व्यक्ति इस बात को तुरंत समझ जाएगा और आपके अंदर की वास्तविक भावना को महसूस कर सकेगा। वह मेहमान शायद बिना घर में प्रवेश किए ही लौट जाएगा। ऐसे में, यदि आप हाथ भी मिलाते हैं, तो वह हाथ मिलाने में भी कोई ऊर्जा महसूस नहीं होती।
समग्रता से कार्य करना ही असली सफलता है
किसी भी कार्य को समग्रता और पूर्णता से करना जरूरी है। अगर आपका मन किसी कार्य को करने का नहीं है, तो उसे बिल्कुल न करें, क्योंकि आधे-अधूरे मन से किया गया कोई भी काम व्यर्थ है। आधे-अधूरे मन से किए गए कार्य न तो आपको संतुष्टि देंगे और न ही उसमें कोई सच्ची सफलता प्राप्त होगी। धीरे-धीरे, ऐसे काम आपके जीवन को एक दिखावे और खोखलेपन में बदल देंगे। जैसे प्लास्टिक के फूलों में कोई खुशबू या जीवन नहीं होता, वैसे ही आपके कार्यों में आत्मा और प्रेम की अनुपस्थिति होगी। जीवन का सच्चा आनंद केवल उन कार्यों में है जो पूरे दिल और समर्पण के साथ किए जाते हैं।
बाहरी दिखावा: आत्मिक विकास में बाधा
आप समाज की रीति-रिवाजों और शिष्टाचारों को निभाकर एक सुविधाजनक जीवन जी सकते हैं, लेकिन यह बाहरी दिखावा धीरे-धीरे आपकी आत्मा को मारने लगता है। आप अंदर से शून्य हो जाते हैं, और आपके जीवन की ऊर्जा समाप्त हो जाती है। सच्चा और प्रामाणिक जीवन जीने के लिए साहस चाहिए। यह जीवन सरल नहीं होता, यह जोखिम से भरा होता है। लेकिन यह जोखिम उठाना इसलिए मूल्यवान है क्योंकि इसमें आपको कभी पछतावा नहीं होता। यह जीवन आपको सच्ची स्वतंत्रता और आनंद का अनुभव कराता है।
सच्चे जीवन का स्वाद: पूर्णता का आनंद
जब आप सच्चाई और प्रामाणिकता के साथ जीने का आनंद प्राप्त करते हैं, तब आपका जीवन आनंदमय हो जाता है। आप बिखरे हुए और टूटे हुए नहीं रहते। आपकी हर गतिविधि में एक नयापन और पूर्णता आ जाती है। उस समय आपको महसूस होता है कि इसके लिए जीवन के सारे संसाधन भी दांव पर लगाना पड़े तो वह कम है। सच्चे जीवन का यह अनुभव इतना अद्वितीय और मूल्यवान होता है कि इसके लिए आप सब कुछ छोड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं। इससे जीवन का असली अर्थ और उसकी गहराई समझ में आती है।
दिखावे और असत्य के जीवन से बचें
अधिकतर लोग असत्य और दिखावे के जीवन में फंसे रहते हैं। वे वो काम करते रहते हैं जिन्हें वे वास्तव में नहीं करना चाहते, उन रिश्तों में फंसे रहते हैं जिनकी उन्हें जरूरत नहीं होती। इस असत्य में जीते हुए वे जीवन के असली आनंद और गहराई को खो देते हैं। यह दिखावा धीरे-धीरे निराशा और हताशा का रूप ले लेता है, और लोग जीवन के असली सुख से वंचित रह जाते हैं।
योग का अर्थ: संतुलन और मध्यमार्ग
योग का वास्तविक अर्थ संतुलन है। यह संतुलन जीवन के दोनों अतियों से बचने का मार्ग दिखाता है। योग का अर्थ है कि आप बाजार में रहकर भी बाजार को अपने मन और आत्मा में न आने दें। बाहरी परिस्थितियों से भागना योग नहीं है, बल्कि अपने अंदर की उथल-पुथल और अव्यवस्था को समझना और उन्हें ठीक करना ही योग का असली उद्देश्य है।
भीतर का बाजार: भागने से नहीं मिलेगा समाधान
लोग सोचते हैं कि जीवन की समस्याएं, चिंता और तनाव केवल बाहरी परिस्थितियों से उत्पन्न होते हैं। वे सोचते हैं कि बाजार, परिवार, और कामकाज की चिंताओं से भागकर मंदिर या मठ में शरण लेना समाधान है। लेकिन सच्चाई यह है कि इन समस्याओं की जड़ बाहर नहीं, बल्कि हमारे अंदर है। आपका मन ही अव्यवस्थित है, और जब तक आप इसे समझेंगे नहीं, तब तक ये समस्याएं किसी न किसी रूप में आपके साथ बनी रहेंगी।
मन की अव्यवस्था: आत्मनिरीक्षण का महत्व
अगर आपको लगता है कि लोग या परिस्थितियाँ आपको क्रोधित करती हैं, तो इसका एक छोटा प्रयोग करें। इक्कीस दिन का मौन धारण करें और अकेले रहें। आपको अनुभव होगा कि बिना किसी बाहरी कारण के भी आप अंदर ही अंदर क्रोधित हो जाते हैं। यह क्रोध और अव्यवस्था आपके अंदर पहले से ही मौजूद है। इसी तरह, आप सोचते हैं कि किसी सुंदर व्यक्ति को देखकर आपके अंदर कामवासना उत्पन्न होती है, लेकिन सच यह है कि वह कामवासना भी आपके भीतर पहले से ही होती है।
पतंजलि का मार्गदर्शन: योग और ध्यान
पतंजलि हमें सिखाते हैं कि योग और ध्यान एक सतत प्रक्रिया है। यह एक दिन में प्राप्त होने वाली चीज़ नहीं है। पतंजलि हमें सिखाते हैं कि योग और ध्यान का अभ्यास धीरे-धीरे, चरण-दर-चरण करना चाहिए। अकस्मात् संबोधि या जागरूकता प्राप्त करना दुर्लभ है और केवल असाधारण लोगों के लिए संभव है। लेकिन सामान्य व्यक्ति के लिए यह योग का मार्ग धीरे-धीरे तय किया जाता है।
आठ चरणों का योग: संतुलन की ओर बढ़ना
पतंजलि का योग मार्ग आठ चरणों में विभाजित है। यह आठ चरण व्यक्ति को धीरे-धीरे अपने भीतर के अव्यवस्था से बाहर निकालकर सच्चे ज्ञान और संबोधि की ओर ले जाते हैं। पतंजलि का मार्ग केवल असाधारण लोगों के लिए नहीं है, बल्कि सामान्य व्यक्ति के लिए भी है। वे हमें सिखाते हैं कि हमें जल्दीबाजी में कोई कदम नहीं उठाना चाहिए। हर चरण के लिए पहले से पूरी तैयारी होनी चाहिए ताकि अगले चरण में प्रवेश करते समय हम आत्मिक रूप से तैयार रहें।
लोभ से बचें और धैर्य रखें
कई लोग लोभ के कारण जल्दी-जल्दी सब कुछ प्राप्त करना चाहते हैं। लेकिन यह वह लोग होते हैं जो तैयार नहीं होते। यदि आप सच्चे साधक हैं, तो आपको पता होगा कि संबोधि या आत्मज्ञान कभी भी अचानक नहीं आता। उसके लिए धैर्य चाहिए, और उसके लिए तैयारी होनी चाहिए। जब आप तैयार होते हैं, तो आप अनंतकाल तक भी इंतजार कर सकते हैं।
योग का फूल: धीरे-धीरे खिलने की प्रक्रिया
पतंजलि हमें सिखाते हैं कि योग एक फूल की तरह है, जो धीरे-धीरे खिलता है। इसे जबरदस्ती या जल्दी-जल्दी नहीं खिलाया जा सकता। हमें धैर्य के साथ, समर्पण के साथ, और सही दिशा में अपने हर कदम को उठाना चाहिए। जब आप ध्यान और योग का अभ्यास करते हैं, तो बीच-बीच में छोटे-छोटे अंतरालों में विश्राम करें। उन क्षणों में जो ज्ञान और अनुभव प्राप्त हुआ है, उसे आत्मसात करें। उसे अपनी मांस-मज्जा में ढालें और फिर अगले चरण की ओर बढ़ें।
योग का सार: संतुलित जीवन की ओर
योग का सार है—संतुलित जीवन जीना। पतंजलि हमें सिखाते हैं कि संबोधि तक पहुँचने का मार्ग धीरे-धीरे तय होता है। यह केवल उन लोगों के लिए नहीं है जो असाधारण हैं, बल्कि सामान्य व्यक्ति भी इस मार्ग पर चलकर जीवन के सच्चे ज्ञान और आनंद को प्राप्त कर सकता है।
–परम् पूज्य गुरुदेव ब्रह्ममूर्ति योगतीर्थ जी महाराज
संस्थापक ध्यान योग आश्रम एवं आयुर्वेद शोध संस्थान