Yogtirth Yog Yatra
प्राणायाम क्या है
By: Yogtirth Ayurved | Published 25-07-2025

तस्मिन् सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेदः प्राणायामः ॥ 49 ॥
आसन की सिद्धि के बाद जो चरण है प्राणायाम। यह सिद्ध होता है श्वास-प्रश्वास पर कुशलता करने से या अचानक श्वास रोकने से
शरीर और मन के बीच श्वास एक सेतु है। ये तीनों बातें समझ लेनी हैं। आसन में स्थिर शरीर, असीम में लीन होता मन और श्वास का सेतु, जोकि तुम्हें जोड़ता है; ये तीनों चीजें एक सम्यक लय में होनी चाहिएँ।
क्या तुमने कभी ध्यान दिया? यदि नहीं, तो अब ध्यान देना कि जब भी तुम्हारा मन बदलता है तो श्वास बदल जाती है, इसके विपरीत बात भी सही है। यदि तुम श्वास का ढंग बदलो तो मन का ढंग बदल जाता है। जब तुम क्रोध से आविष्ट होते हो तो क्या तुमने ध्यान दिया कि कैसे तुम श्वास लेते हो? तब तुम अराजक एवं उत्तेजित ढंग से श्वास लेते हो। यदि तुम उसी ढंग से श्वास लेते रहो तो तुम जल्दी ही थक जाओगे। वह तुम्हें जीवन न देगी, अपितु तुम जीवन खो रहे होते हो। जब तुम शांत और मौन होते हो तब श्वास पर ध्यान देना, वह बहुत धीमी चलती है। वह इतनी धीमी चलती है कि तुम उसे अनुभव नहीं करते हो कि चलती है या कि नहीं। प्रत्येक भाव दशा के साथ श्वास की लय बदल जाती है।
श्वास एक सेतु है। जब तुम्हारा शरीर स्वस्थ होता है तो श्वास अलग ढंग से चलती है, जब तुम बीमार होते हो तो श्वास अलग ढंग से चलती है। जब तुम पूर्ण रूप से स्वस्थ होते हो तो तुम श्वास को बिल्कुल भूल ही जाते हो। जब तुम स्वस्थ नहीं होते हो तो तुम्हारा ध्यान बार-बार श्वास पर जाता है।
प्राणायाम का अर्थ श्वास पर नियंत्रण नहीं है। यह प्राणायाम शब्द की ठीक व्याख्या नहीं है। प्राणायाम का अर्थ है प्राण-ऊर्जा का विस्तार।
प्राणायाम में दो शब्द हैं – एक ‘प्राण’ और दूसरा ‘आयाम’। ‘प्राण’ का अर्थ है श्वास में छिपी प्राण-ऊर्जा, और ‘आयाम’ का अर्थ है असीम विस्तार।
श्वास की गहन लयबद्धता में कोई सेतु तुम्हें दूसरों के विचारों से, भावों से तथा फिर अस्तित्व से जोड़ता है। जैसे-जैसे अनुभूति गहरी होती जाती है तुम सम्पूर्ण अस्तित्व के साथ श्वास लेते हो।
प्राणायाम का अर्थ है समग्र के साथ श्वास लेना। यदि तुम नियंत्रण करने का प्रयास करते हो तो कैसे तुम समग्र के साथ सहज हो सकते हो? जब तुम समग्र के साथ एक हो जाते हो अर्थात जब प्राकृतिक रूप से -द्वंद्व रहित होकर सहज चेतना से प्राण प्रवाहित होता है तब तुम्हारी जीवन-ऊर्जा फैलती चली जाती है। वह जीवन-ऊर्जा पेड़-पौधों, आकाश- सितारों तक विस्तृत होती चली जाती है। अब तुम श्वास नहीं लेते, चेतना तुम में श्वास लेती है। अब तुम और चेतना दोनों अलग-अलग नहीं होते, वे इतनी एक होती हैं कि यह कहना व्यर्थ होता है कि यह मेरी श्वास है। ऐसा लगता है जैसे संपूर्ण विश्व मेरे में श्वास ले रहा है।
जब तुम श्वास लेते हो तो एक समय आता है जब पूरी तरह श्वास भीतर होती है और कुछ क्षणों के लिए श्वास ठहर जाती है। ऐसा ही तब होता है जब तुम श्वास बाहर छोड़ते हो, वह भी कुछ क्षणों के लिए बाहर ठहर जाती है। जब श्वास न बाहर जाती है, न भीतर जाती है, वह ठहर जाती है। उन क्षणों में जब श्वास ठहर जाती है तो तुम्हारा मृत्यु से साक्षात्कार होता है और मृत्यु से साक्षात्कार, परमात्मा से साक्षात्कार है।
जब तुम मृत्यु की घड़ी में होते हो, एक पल को तुम्हारा मृत्यु से साक्षात्कार हो जाता है – श्वास ठहर गयी होती है। दोनों श्वास के अंतराल में यदि तुम प्रवेश कर सको तो वही द्वार है सत्य का, उस क्षण में सब विचार मिट जाते हैं, तुम अकेले बचते हो, उस क्षण में तुम अपने साथ अपना ज्ञान, विचार, धन, त्याग, प्रेम, अहंकार, कुछ भी और नहीं ले जा सकते, तुम अकेले छूट जाते हो, अस्तित्व के अलावा बाकी सभी चीजें छूट जाती हैं। सब कुछ द्वार पर रह जाता है, अस्तित्व में तुम अकेले ही प्रवेश करते हो।
यह एक विधि है अस्तित्व के साथ एक होने की, और यही क्षण है सत्य को जान लेने का जब श्वास पल भर को भीतर ठहर जाती है या बाहर ठहर जाती है। इन अंतरालों के प्रति, इन क्षणों के प्रति और अधिक सजग होना है। इन अंतरालों के द्वारा तुममें सत्य मृत्यु की भांति प्रवेश करता है। या दूसरी विधि है श्वास को अचानक रास्ते पर चलते हुए अचानक रोक देना, एक अचानक झटका और मृत्यु प्रवेश कर जाती है। लेकिन इसे योजना बनाकर नहीं करना। किसी भी समय अचानक श्वास को अचानक रोक सकते हो, उसी श्वास के क्षण में मृत्यु प्रवेश कर जाती है।
यदि तुम सजगता-पूर्वक एक घंटे भी यह प्रयोग कर सको तो तुम्हारा संपूर्ण जीवन ही रूपांतरित हो जाएगा। श्वास को केवल अनुभव करना। उसके अंतराल को केवल देखना नहीं है उसे अनुभव ही किया जा सकता है। जैसे-जैसे सजगता बढ़ती जाएगी तो तुम उस अंतराल को पकड़ने में, अनुभव करने में सफल हो सकोगे। जब श्वास न बाहर होती न अंदर होती, कुछ क्षणों के लिए मध्य में ठहर जाती है तो इसी शून्य में सत्य प्रकट होता है।