जीवन और योग भाग २

पातञ्जल समाधियोग: सत्य की खोज और आत्मज्ञान का मार्ग

सत्संग का वास्तविक अर्थ
सत्संग का मतलब है सत्य को प्राप्त प्रामाणिक और संयमित व्यक्ति के साथ होना। लेकिन बोध (ज्ञान) की अवधारणा को लोग गलत तरीके से समझते हैं। बोध को बाहरी रूप से आरोपित करने की कोशिश की जाती है। लोग खुद को बाहर से शांत दिखाने का अभ्यास करने लगते हैं। इस तरह का मौन और अनुशासन दिखावटी होता है, और गहराई में वे अशांति का अनुभव करते रहते हैं। जैसे-जैसे व्यक्ति अपने भीतर के ज्वालामुखी को दबाने की कोशिश करता है, वह किसी भी समय फूटने के लिए तैयार होता है।

आत्म-अन्वेषण का महत्व
योग की साधना शुरू करने से पहले हमें किसी चीज को दुराग्रहपूर्वक अपने ऊपर थोपने से बचना चाहिए। बाहरी अनुशासन पर ध्यान देने की बजाय, हमें अपने भीतर की बाधाओं को हटाकर आंतरिक प्रवाह को मुक्त करना चाहिए। पतञ्जलि के अष्टांग योग के आठ चरण उसी तरह हैं, जैसे कि मार्ग से चट्टानों को हटाना। बाहरी अनुशासन आसान और आकर्षक लगता है, लेकिन इससे व्यक्ति असली समाधान तक नहीं पहुंच पाता।

योग और आंतरिक परिवर्तन

मुखौटे और आंतरिक सौंदर्य
बाहरी अनुशासन या दिखावे का जीवन एक मुखौटे जैसा होता है। यह स्थायी नहीं होता, और लोग इसे आसानी से देख सकते हैं। हालांकि किसी व्यक्ति के लिए क्रोध, घृणा, या अन्य नकारात्मक भावनाओं को दबाना आसान हो सकता है, लेकिन ये दबाए हुए भावनाएँ अंततः उसकी संपूर्णता और आंतरिक शांति को नष्ट कर देती हैं। क्रोध और घृणा का प्राकृतिक प्रवाह यदि रोका जाए, तो ये भावनाएँ जीवन का स्थायी हिस्सा बन जाती हैं, जिससे व्यक्ति और उसके रिश्ते प्रभावित होते हैं।

भीतर का सौंदर्य: पतञ्जलि की अवधारणा
पतञ्जलि का योग सिर्फ बाहरी अनुशासन नहीं है। यह उस बीज के खिलने का मार्ग है, जो हमारे भीतर पहले से मौजूद है। जैसे एक बीज को उचित मिट्टी, पानी और ध्यान की जरूरत होती है, वैसे ही हमें अपने भीतर के ज्ञान और बोध को साकार करने के लिए आत्म-प्रेम और ध्यान की आवश्यकता होती है। जब यह बीज खिलता है, तो इसकी सुवास सभी दिशाओं में फैल जाती है, और यह जीवन को नए अर्थ और दिशा देता है।

आंतरिक संघर्ष और क्रोध का समाधान

क्रोध और घृणा की ऊर्जा
क्रोध और घृणा के बीच एक सूक्ष्म अंतर होता है। जब क्रोध को दबाया जाता है, तो यह घृणा का स्थायी रूप ले लेता है। यह केवल बाहरी आचरण तक सीमित नहीं रहता, बल्कि व्यक्ति की पूरी व्यक्तित्व को प्रभावित करता है। पतञ्जलि का योग हमें इस नकारात्मक ऊर्जा को भीतर मोड़ने की बजाय उसे सकारात्मक दिशा में प्रवाहित करने की शिक्षा देता है।

समाज और अनुशासन का दबाव

बाहरी अनुशासन की सीमाएँ
समाज में बाहरी अनुशासन और प्रचलित रीति-रिवाजों के अनुसार जीने का दबाव होता है। माता-पिता, शिक्षक और अन्य जानकार लोग हमारे जीवन में अनुशासन और नियमों को थोपते हैं, बिना यह सोचे कि यह हमें किस दिशा में ले जा रहा है। अक्सर लोग अंधविश्वासों और बाहरी दिखावे पर अधिक ध्यान देते हैं, जबकि जीवन में सच्चाई और प्रामाणिकता की खोज महत्वपूर्ण होती है।

सद्गुरु की खोज
सद्गुरु की खोज भारत में एक गहरी परंपरा है। जो व्यक्ति सच्चे ज्ञान को प्राप्त कर चुके होते हैं, वे अपने अनुयायियों को सत्य के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। ऐसे व्यक्तियों के साथ रहकर जीवन की समग्रता को समझा जा सकता है और अस्तित्व के प्रत्येक पहलू से प्रेम करना सीखा जा सकता है।

प्रामाणिक जीवन और प्रेम

प्रेम का सच्चा अर्थ
प्रेम की सच्चाई और दिखावे के बीच एक स्पष्ट अंतर होता है। जब हम सच्चे प्रेम से किसी का स्वागत करते हैं, तो उसमें समग्रता होती है। लेकिन जब हम केवल शिष्टाचार के कारण किसी का स्वागत करते हैं, तो उसमें आत्मीयता की कमी होती है। जीवन में हर कार्य को समग्रता से करना आवश्यक है, ताकि जीवन की सच्चाई और सुंदरता को पूरी तरह से जीया जा सके।

निष्कर्ष: प्रामाणिकता और आत्म-ज्ञान का महत्व

जीवन में प्रामाणिकता और सच्चाई को अपनाना अत्यंत महत्वपूर्ण है। बाहरी दिखावे और अनुशासन के पीछे भागने के बजाय, हमें अपने भीतर की सच्चाई को पहचानना और उसे साकार करने के लिए काम करना चाहिए। पतञ्जलि का योग हमें इसी दिशा में मार्गदर्शन देता है, ताकि हम अपने जीवन को समग्रता और प्रेम के साथ जी सकें।

परम् पूज्य गुरुदेव ब्रह्ममूर्ति योगतीर्थ जी महाराज

संस्थापक ध्यान योग आश्रम एवं आयुर्वेद शोध संस्थान

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