सम्पूर्ण योगदर्शन एक अनूठा समन्वय है। अष्टांग - योग की अनेक योग विधियों के माध्यम से भगवान पतञ्जलि ने योग साधकों को यह सन्देश पहुँचाया है कि तुम इस क्षुद्र देह में रहकर भी विराट् अस्तित्व के सागर को जानकर अज्ञान से मुक्त हो सकते हो। यह दिशा बोध निश्चिय ही आध्यात्मिक आयामों की ओर ले जाता हुआ वर्तमान विश्व के लिए और भी अधिक अनिवार्य एवं प्रासंगिक हो जाता है ।
भगवान पतञ्जलि से पहले भी यह योग विज्ञान विकासोन्मुख के शिखर की ओर अग्रसर रहा था। लेकिन यह उस माला की भांति थी जिसके सभी मनके बिखरे पड़े हों, लेकिन पतञ्जलि ने उन मनको को अर्थात् बिखरे हुए योग विज्ञान के सूत्रों को एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण देकर उसे योग-दर्शन के रूप में मानव जाति के सामने रखा ।
योग परम्परा को आगे बढ़ाते हुए भगवान पतञ्जलि ने लगभग 5000 वर्ष पूर्व योग सूत्रों के विश्लेषण-क्रम को वैज्ञानिक रूप देकर सम्पूर्ण मानव जाति को एक वैज्ञानिक व योगमय जीवन जीने की कला का मार्ग प्रदान किया ।
भौतिक आविष्कार और आधुनिक विज्ञान जैसे - 2 सूक्ष्म से सूक्ष्मतर आविष्कारों की ओर बढ़ रहा है, ऐसे ही योग विज्ञान भी सूक्ष्मतर आयामों की गवेषणा कर सृष्टि के शाश्वत सत्यों की उपलब्धि की ओर बढ़ रहा है। इस अद्भुत परम्परा की सशक्त कड़ी की आधारशिला हैं भगवान पतञ्जलि । भगवान पतञ्जलि अन्तः जगत के सबसे बड़े वैज्ञानिक हैं । उनकी अनुभूति एक वैज्ञानिक अन्तः प्रज्ञा की है। उनके योग सूत्रों में गणित जैसा तर्क तो है ही लेकिन उसके साथ - साथ कवि जैसी सरलता भी झलकती है । इसलिए पतञ्जलि अध्यात्म जगत के एक दुर्लभ पुष्प हैं। उनके पास वैज्ञानिक अन्तः प्रज्ञा है लेकिन उनकी यात्रा पदार्थ से अस्तित्व की ओर अर्थात अन्तर्जगत की है ।
वे अध्यात्म जगत के प्रथम और अन्तिम वचन बन गये हैं। योग के जगत में वे ही आरम्भ हैं और वे ही अन्त हैं। पिछले 5000 वर्षों में उनसे अधिक कोई अध्यात्म के जगत में उन्नत नहीं हो सका । लगता है उनसे अधिक उन्नत हुआ ही नहीं जा सकता। उनके योग सूत्र अन्तिम वचन ही रहेंगे क्योंकि यह संयोग अनूठा, अद्वितीय एवं असंभव है । वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखना और मानसिक जगत में प्रवेश करना लगभग - लगभग असम्भव सम्भावना है।
भगवान पतञ्जलि अत्यन्त विरल व्यक्ति हैं । अब तक जितने भी बुद्ध पुरुष हुए हैं उन सभी का दृष्टिकोण वैज्ञानिक नहीं है। वे धर्म प्रवर्तक तो हुए हैं लेकिन धर्म को वैज्ञानिक दृष्टिकोण देने में असफल रहे हैं ।
भगवान पतञ्जलि की शब्दावली तर्क की, विवेचन की है। लेकिन उनका संकेत प्रेम की ओर, परमात्मा की ओर है। वे बुद्धि से, तर्क से बातें करते हैं लेकिन उनका लक्ष्य हृदय ही है। इसलिए वे जीवन को समग्रता से, सजगता से जीने के पक्षधर हैं। जीवन विरोधी, समाज विरोधी नहीं हैं। वे सच्चे व समग्र जीवन को जीने की कीमिया (कला) सिखाते हैं । वस्तुतः वे अन्तर्जगत के आध्यात्मिक संस्कृति के रहस्यवादी ऋषि हैं । उनका कहना है कि अन्तर्जगत में मृत्यु पर जीवन समाप्त नहीं होता, अपितु तब एक और अस्तित्व का आयाम खुलता है । जो व्यक्ति अस्तित्व के द्वार से देखता है उसके लिए जीवन के नये-नये रहस्य खुलते हैं। वह पतञ्जलि की भांति जीवन के पार चला जाता है ।
भगवान पतञ्जलि के इन योग-सूत्रों से मनुष्य में आध्यात्मिक संस्कृति में निष्ठा, प्रेम और चैतन्य जागरण होता है । उनके अनुसार आध्यात्मिक विकास विनाश में नहीं अपितु सृजन में, आनन्द में, ऊर्जा के रूपान्तरण में ले जाएगा । पतञ्जलि कहते हैं कि मनुष्य आदिकाल से अपने को सभी प्रकार से सुरक्षित करने की चिन्ताओं में डूबा हुआ है, लेकिन वह यह भूल गया है कि इन सुरक्षाओं में ही वह मुत्यु के सामान जुटा रहा है । मृत्यु से भयभीत होना, जीवन से चिपकना ही वास्तव में मृत्यु है । शारीरिक मृत्यु के भय से पार होना, दूसरे जीवन का अर्थात् आध्यात्मिक जीवन का आरम्भ है। जीवन के प्रति इस बोध को प्राप्त करने वाले व्यक्तित्व को पतञ्जलि विवेकशील अर्थात् प्रज्ञाशील व्यक्ति कहते हैं। योग के द्वारा इस प्रज्ञा को पाने के लिए अथवा सत्य को जानने के लिए उन्होंने योग को आठ चरणों में विभाजित किया है। भगवान पतञ्जलि आज हमारे मध्य में शरीर रूप में नहीं होते हुए भी विद्यमान हैं । उनका यश युगों-युगों तक छाया रहेगा । आध्यात्मिक जगत उनका सदैव सदैव आभारी रहेगा ।
–परम् पूज्य गुरुदेव ब्रह्ममूर्ति योगतीर्थ जी महाराज
संस्थापक ध्यान योग आश्रम एवं आयुर्वेद शोध संस्थान