स्वयं की खोज, दुःख से मुक्ति और वर्तमान में जीने की विधि
अस्तित्व से जुड़ाव: योग का वास्तविक उद्देश्य
योग का लक्ष्य अस्तित्व की अखंडता से जुड़ना है। वर्तमान में हम विभाजित और विखंडित जीवन जी रहे हैं, जिससे हमारा अस्तित्व के साथ कोई सीधा संबंध नहीं होता। हमारा अहंकार हमें वास्तविक अस्तित्व से अलग कर देता है। योग की पद्धति सत्य को उद्घाटित करने और हमें वर्तमान क्षण में लाने की प्रक्रिया है, जहाँ न तो भविष्य की आशाएँ होती हैं और न ही भूतकाल की निराशाएँ। यह एक वैज्ञानिक पद्धति है, जो हमें “अभी और यहीं” में जीवन जीने की कला सिखाती है।
परमात्मा नहीं, स्वयं की खोज
अक्सर यह सोचा जाता है कि योग का लक्ष्य परमात्मा की खोज है, लेकिन वास्तविकता इससे उलट है। योग का उद्देश्य परमात्मा की तलाश नहीं, बल्कि स्वयं को जानना है। यह हमारे मन को अतिक्रमित करने और उसकी सीमा से बाहर निकलने की वैज्ञानिक विधि है। योग हमें भ्रमों और भ्रांतियों से निकालकर हमारी आंतरिक यात्रा पर ले जाता है, जहाँ हमें भूत या भविष्य के किसी स्वर्ग या मोक्ष की आशा से मुक्ति मिलती है। योग हमें लौकिक और पारलौकिक सभी प्रकार की आशाओं और निराशाओं से मुक्त करता है, जिससे हम भूत और भविष्य के सपनों से दूर होकर, वर्तमान में स्थिर हो पाते हैं।
दुःख से मुक्ति का मार्ग
योग हमें यह समझाता है कि हमारी समस्या परमात्मा की खोज नहीं है, बल्कि दुःख है। इसलिए, योग हमें दुःख से बचने का मार्ग प्रदान करता है। परमात्मा हमारे लिए एक विश्वास मात्र है, जबकि संसार हमारे लिए एक सत्य है। योग हमें यह सिखाता है कि दुखों का असली कारण हमारा मन है। मन को अतिक्रमित करके ही हम सच्ची शांति और आनंद प्राप्त कर सकते हैं। इस प्रक्रिया में, योग हमें भूत और भविष्य की आशाओं से मुक्त करता है और हमें सिखाता है कि कैसे हम वर्तमान में ठहरकर, जीवन का साक्षात्कार कर सकते हैं।
स्वयं को जानना ही संसार की खोज का सही उपाय
योग के अनुसार, संसार और अस्तित्व को समझने का एकमात्र उपाय स्वयं को जानना है। जब व्यक्ति अपने भीतर प्रवेश करता है, तभी वह अस्तित्व और संसार का साक्षात्कार करता है। योग हमें यह सिखाता है कि हम सागर में पैदा होते हैं और अंततः उसी में लीन हो जाते हैं। इस दृष्टिकोण से, परमात्मा की खोज निरर्थक होती है, क्योंकि वह हमसे कभी अलग ही नहीं हुआ। ठीक उसी प्रकार जैसे मछली सागर से अलग नहीं हो सकती, वैसे ही हम परमात्मा या अस्तित्व से अलग नहीं हो सकते।
मन की बाधा और योग की साधना
योग हमें यह बताता है कि मन या चित्त ही स्वयं को जानने में सबसे बड़ी बाधा है। मन हमारे अहंकार को पोषित करता है और हमें सत्य से दूर रखता है। योग का लक्ष्य इस मन के पार जाना है, ताकि व्यक्ति स्वयं को जान सके। जब मन शांत हो जाता है, तब व्यक्ति को अपने वास्तविक स्वरूप का बोध होता है। इस स्थिति में, सम्पूर्ण सृष्टि उत्सवमय दिखने लगती है, लेकिन मनुष्य अकेला ऐसा प्राणी है जो दुखी है।
अतीत और भविष्य की दौड़ से बाहर आना
योग यह समझाता है कि मनुष्य को दुःख का सबसे बड़ा कारण उसका अतीत और भविष्य में उलझा होना है। सम्पूर्ण सृष्टि वर्तमान में जीती है, लेकिन मनुष्य वर्तमान क्षण को छोड़कर अतीत और भविष्य में भटकता रहता है। अतीत अब है नहीं और भविष्य अभी आया नहीं है, लेकिन फिर भी हम अपनी सारी ऊर्जा इन्हीं दोनों में लगा देते हैं। योग हमें सिखाता है कि अतीत और भविष्य को छोड़कर केवल वर्तमान में ठहरने से ही हम सच्चे आनंद का अनुभव कर सकते हैं।
विचार और ध्यान: सत्य का द्वार
विचार हमेशा या तो अतीत की ओर होते हैं या भविष्य की ओर। कोई भी विचार वर्तमान से जुड़ा नहीं होता। विचार मृत होते हैं या उनकी अभी तक उत्पत्ति नहीं हुई होती। योग हमें यह सिखाता है कि विचार कभी भी सत्य नहीं होते; सत्य केवल अस्तित्वगत अनुभव होता है। ध्यान की प्रक्रिया का सार यही है कि विचारों के बीच के अंतराल को देखना और उसी अंतराल के माध्यम से ध्यान में प्रवेश करना है।
ध्यान: एक स्वाभाविक अवस्था
ध्यान किसी प्रयास से प्राप्त की जाने वाली चीज़ नहीं है, यह स्वाभाविक रूप से हर व्यक्ति के भीतर पहले से मौजूद है। योग यह बताता है कि ध्यान मन की गहराई में है, जबकि मन केवल सतह पर मौजूद होता है। ध्यान का अनुभव करना कोई कठिन साधना नहीं, बल्कि एक स्वाभाविक अवस्था है जिसे मनुष्य बिना किसी कठिनाई के प्राप्त कर सकता है।
परमात्मा की खोज: अनजाने में जारी यात्रा
परमात्मा की खोज भी एक अनजानी यात्रा है। भले ही व्यक्ति परमात्मा को अलग-अलग नामों, रूपों और साधनों में खोज रहा हो, परंतु सत्य यह है कि वह उसे प्रसन्नता, आनंद, संगीत, नृत्य, प्रेम, और जीवन के हर पहलू में खोज रहा है। परमात्मा और कुछ नहीं, बल्कि जीवन का वह स्वरूप है जिसे हम हर दिन अनुभव कर सकते हैं।
निष्कर्ष: स्वयं को जानो, सब कुछ जान जाओ
योग का अंतिम लक्ष्य स्वयं की खोज है। जब व्यक्ति स्वयं को जान लेता है, तब उसे संसार और अस्तित्व का साक्षात्कार होता है। योग हमें यह सिखाता है कि विचारों के पार जाकर ही हम सच्चे ध्यान में प्रवेश कर सकते हैं, जहाँ से सभी दुःखों का अंत होता है और शाश्वत आनंद की अनुभूति होती है।
–परम् पूज्य गुरुदेव ब्रह्ममूर्ति योगतीर्थ जी महाराज
संस्थापक ध्यान योग आश्रम एवं आयुर्वेद शोध संस्थान